गुरुवार, 14 मार्च 2013

यूपी सरकार का 1 साल: जश्न या चुनौती



आज अखिलेश यादव सरकार यानि यूपी सरकार के एक साल पूरे हो गए.इसी के साथ शुरू हो गया है माननीय मुख्यमंत्री की विभिन्न क्षेत्रों में  सफलता और असफलता पर विचार-विमर्श का दौर .आज ही के दिन अखिलेश यादव जी ने यूपी की कमान संभाली थी.और अपने लोकलुभावन वादों को पूरा करने की घोषणा की थी.जिनमे से कन्याविद्या धन, लैपटॉप वितरण,बेरोजगारी भत्ता जैसी प्रमुख योजनाओं को उन्होंने पूरा भी किया.अगर कोई दाग यूपी सरकार पर है.तो वो है सूबे की चरमरायी कानून व्यवस्था.यूपी में कई जगहों पर हुए दंगे कानून व्यवस्था की पोल खोलती है.निश्चित ही यूपी सरकार के लिए जश्न मनाने का दिन है.लेकिन यह दिन और भी अच्छा हो सकता था अगर थोड़ा  बहुत ध्यान कानून व्यवस्था पर भी दे दिया जाता.
                                         अखिलेश सरकार की कई उपलब्धियां भी है.महिलाओं की हेल्प के लिए शुरू की गयी फोन हेल्पलाइन सेवा 1090 बड़ी ही कारगर साबित हो रही है.'जनता दर्शन ' भी आम लोगों की समस्याओं को सुनने और उन्हें सुलझाने के लिए एक बड़ा कदम है.सरकार द्वारा चलाई गयी एम्बुलेंस सेवा 108 भी मरीजों को स्वास्थय उपलब्ध करा रही है.सरकार ने 2013-14 के बजट में भी किसी तरह की लोकलुभावन योजनाओं का शुभारम्भ न करके पुरानी ही योजनाओं को उचित ढंग से  क्रियान्वित करने की ज़रूरत महसूस की.
      यदि सरकार की एक तरफ चुनिन्दा उपलब्धियां हैं तो दूसरी तरफ कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाते हुए सांप्रदायिक दंगो ने सरकार की किरकिरी भी की  है.जंहा एक तरफ लखनऊ,फ़ैजाबाद और बरेली जैसे शहरों में हुए दंगों ने सरकार के माथे पर दाग लगाया वंही दूसरी तरफ हाल ही में हुए कुंडा काण्ड ने प्रत्यक्ष रूप से सरकार पर कई सवाल उठाये.अखिलेश सरकार को उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए यूपी में निवेश की ज़मीन तैयार करनी होगी जिससे युवाओं को रोज़गार मिले.और कानून व्यवस्था में एक व्यापक बदलाव लाना होगा जिससे राजधानी के लोग सुरक्षित महसूस कर सकें.

शनिवार, 9 मार्च 2013

नन्ही परी



















नन्ही-सी,प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.
पैदा हुई तो झूम रहा था सारा परिवार,
मानो उस वक़्त आशीर्वाद दे रहा था उसे
सारा संसार..
कभी न रुकने वाली
खुशियों की बौछार है वह,
नन्ही-सी प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.
दादा जब घर आये तो उनके पीछे भागे,
दादी पर प्यार लुटाती है,
हो कोई तकलीफ मन में उनके
तो देख उसे मिट जाती है..
हर समय उपलब्ध रहने वाली
दर्द-निवारक दवा है वह,
नन्ही-सी,प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.
पापा के ऑफिस से लौटने का
वह हर पल करती है इंतजार,
सोचती है कब निकलेगी किचेन से
मम्मी और मुझ पर लुटाएंगी
ढ़ेर सारा प्यार..
हमें संयम का पाठ पढ़ाने वाली
एक शिक्षक है वह,
नन्ही-सी,प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.
एक चाचा उसको घुमाते हैं,
एक चाचा चिल्लवाते हैं,
एक चाचा दिल्ली में बैठकर
उसे वंही बुलाते हैं..
नाक सिकोड़कर हंसने वाली
सभी के बाल नोचती है वह,
नन्ही-सी,प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.
रोती है,चिल्लाती है,हंसती है,
गुनगुनाती भी है वह,
नन्हे-नन्हे हाथों को जोड़कर
‘चाचू नमस्ते’ करती भी है वह..
अब तक तो आपको पता चल
ही गया होगा कि कौन है वह,
हाँ मेरी चुलबुल-सी,मासूम-सी
भतीजी है वह..
नन्ही-सी प्यारी-सी परी है वह,
हम सबकी राजदुलारी है वह.

गुरुवार, 7 मार्च 2013

महिला दिवस :महिला एक,रूप अनेक




क्या होती है एक महिला? देवी का स्वरुप होती है एक महिला.ममता की मूरत होती है एक महिला जिसमे कूट-कूट कर प्यार भरा होता है.जो समस्याओं का सामना निर्भय होकर करती है.जो हर वक़्त अपने बच्चे को संपूर्ण प्रेम देती है तो उसके कुछ बुरा करने पर उसे डांटने या मारने में भी गुरेज़ नहीं करती वह भी उसकी भलाई के लिए जो आगे चलकर उस बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व को निखारती है.
यह तो हमेशा से विवाद का विषय रहा है कि महिलाओं और पुरुषों में से कौन ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन यह सर्वविदित और मान्य है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा संयमी और निर्भीक होती है.
महिलाऐं वे होती है जो बड़ी से बड़ी परिस्थितियों में भी धैर्य रखती है और साहस का परिचय देती हैं.महिलाओं में वो ताकत होती है जो एक मानव को जन्म देती है.महिला ही एक बच्चे को बड़ा बनाती है,उसे गरिमामयपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करती है.
इस बारे में ये कहावत महत्वपूर्ण है कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है.पूरी दुनिया चलती है जब एक महिला काम करती है.अगर वह काम करना बंद कर दे तो समझो पूरी दुनिया रुक जाएगी.भले ही यह अति लगे लेकिन गहराई में जाने पर यह पता चल जाता है कि दुनिया भर की गतिविधियों के पीछे का कारण एक महिला ही होती है चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक.ज़्यादातर पुरुषों का आदर्श भी महिलाएं जैसे उनकी मां,पत्नी या बहन ही होती हैं.मेरी आदर्श भी मेरी मां हैं.मुझे गर्व है कि वह मेरी मां हैं.हमें भी महिलाओं को आदर्श मानकर उनका आदर करना चाहिए और अपनी पुरुषवादी सोच को त्यागकर उनकी प्रगति पर गर्व करना चाहिए.
-फ़ैज़ अहमद के इस शेर के साथ अपनी बात ख़त्म करता हूँ.

-सब कुछ खुदा से माँग लिया तुझको माँगकर
उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद

रविवार, 3 मार्च 2013

इच्छा पर नियंत्रण




मैं अपनी इच्छाओं को काबू में रखता हूँ.जितनी ज्यादा इच्छाएं होंगी उतनी ज्यादा अशांति हमारे मन में होगी और जितनी कम इच्छाएं होंगी उतनी कम अशांति होंगी और मन प्रसन्न रहेगा.इसीलिए ऋषि-मुनिजन सदियों से हमें अपनी इच्छाओं को त्याग करने का सन्देश देते आयें है.
हमें ज्यादा इच्छाएं नहीं रखनी चाहिए क्योंकि मेरी राय में हम जितनी कम इच्छाएं रखेंगे उतनी ही जल्दी हम उन्हें पा सकेंगे.यदि ज्यादा इच्छाएं होंगी तो उन्हें पूरा करने में भी ज्यादा समय लगेगा और उन्हें पूरा करने के चक्कर में हमारा मन हमेश अशांत रहेगा.जिससे हम अपना स्वस्थ दृष्टिकोण व परिपक्वता खो देंगें.
मनुष्य के दिमाग में ऐसी सैकड़ों इच्छाएं होती हैं जिनका उनके भविष्य से कोई वास्ता नहीं होता है.वह केवल क्षणिक सुख के लिए होती हैं.कम या बहुत कम इच्छाएं होने पर हम उन्हें शीघ्र ही प्राप्त कर सकते हैं जिससे हमे सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी और हमारे अन्दर गज़ब का आत्मविश्वास पैदा होगा और हम खुश रहेंगे.इससे हम अपनी स्वस्थ सोच से उन निरर्थक व फालतू की इच्छाओं को त्यागकर सार्थक इच्छाओं को पूरा करने में ध्यान लगा पाएंगे और उन्हें बेहतर ढंग से पूरी कर सकेंगे.

2013-14 का फीका बजट



वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने यूपीए-२ का अंतिम बजट पेश कर दिया.उन्होंने अपने भाषण में कहा कि भारत एक विविधता वाला देश है और अगर हमने उपेक्षित एवं गरीब तबके पर विशेष ध्यान नहीं दिया तो समाज के कई वर्ग पिछड़ जायेंगे.लेकिन इस वर्ग के लिए जो बजट में आवंटन किया गया है वह वर्तमान ज़रूरतों के लिहाज़ से नाकाफी है.इसमें स्वास्थ्य,शिक्षा,और स्वच्छता पर वर्ष 2012-13 की तुलना में आवंटन कम हुआ है.


शिक्षा के क्षेत्र में कुल सार्वजनिक व्यय जीडीपी का 3.31% है जबकि कोठारी कमीशन ने 6% किये जाने की सिफारिश की है.इस बजट में शिक्षा पर कुल आवंटन जीडीपी का 0.69% किया गया है.जो चालू वित्त वर्ष के 0.66% की तुलना में मामूली रूप से बेहतर है.


2012-13 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय जीडीपी का महज़ 1% था.ग्लोबल विज़न से इस मामले में हम निचले पायदान पर खड़े हैं.बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन(एनएचएम) के लिए 21,239 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं जबकि इस मिशन का दायरा बढाने की उम्मीद थी.


शुद्ध पेयजल उपलब्ध करने के लिए सरकार ने 11वी पंचवर्षीय योजना तक 1,45,000 करोड़ रुपये खर्च किये.2011 की जन्गादना के अनुसार 43.5% लोगों के पास वाटर सप्लाई की सुविधा है .11% लोग कुँए से जल प्राप्त करते हैं.42% लोग हैंडपंप/ट्यूबवेल और 3.5% लोग अन्य स्त्रोतों से जल प्राप्त करते हैं.दूसरी तरफ स्वच्छता के मामले में तस्वीर निराशाजनक है.इसके बावजूद इस बार ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता के मामले में बजटीय आवंटन जीडीपी का महज़ 0.13% किया गया है जो पिछले साल 0.14% था.


42,800 अमीरों पर टैक्स बोझ बढ़ने से गरीबों का कितना भला होगा! उनका भला तब होगा जब उनके लिए पोषक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके.रहने के लिए एक छोटा सा ही सही लेकिन स्वच्छ आवास मुहैया हो.

नवीन लोक प्रशासन की दरकार




प्रशासन का अर्थ श्रेष्ठ विधि से शासन करना है.इसका सामान्य अर्थ एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति की भलाई को ध्यान में रखते हुए सेवा का कोई कार्य करना है.प्रशासन करना एक कला है जिसमे एक विशेष ज्ञान एवं कौशल की आवश्यकता होती है.इस कला को अभ्यास से सीखा जा सकता है.लोक प्रशासनिक समस्याओं को हल करने के पारंपरिक तरीको में अनुभव पर आधारित निर्णय,साधारण बोध,प्रशासनिक कौशल,स्वाभाविक नेतृत्व आदि गुणों पर विश्वास रखा जाता था.आजकल इस प्रकार के दृष्टिकोण के प्रति श्रद्धा कम होती जा रही है और परिवर्तन तथा संशोधन के प्रति जागरूकता बढती जा रही है.जन्हा परंपरागत प्रशासन नकारात्मक था वंही नवीन लोक प्रशासन सकारात्मक,लोक हितकारी,नैतिकता का पुट लिए हुए आदर्शात्मक है.मानव विकास ही इसका परम लक्ष्य है.सत्ता पर काबिज़ लोगों को इस नवीन लोक प्रशासन को अपनाना चाहिए जिसका आधार नैतिकता,सामाजिक उपयोगिता एवं प्रतिबद्धता होना चाहिए.

बर्बाद

इस कदर हमने खुद को कर लिया बर्बाद  फिर निकले नही जज़्बात कोई उसके जाने के बाद..!!