शुक्रवार, 28 जून 2013

उत्तराखंड:विकास या विनाश


उत्तराखंड में हुई भारी तबाही के बाद वंहा के तथा अन्य राज्यों के मंत्रियों ने पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद करने की घोषणा की है.इनमे से कई मंत्री ऐसे हैं जो पिछले एक दशक से उत्तराखंड का विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण करने में लगे थे.जिसमे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र की पूर्णतया उपेक्षा की गयी.परिणामस्वरूप कुदरत की इस विनाशलीला का कहर उत्तराखंड पर बरपा.इसे दैवीय आपदा कम मानवीय आपदा कहना उचित प्रतीत होता है क्योंकि इसका मुख्य कारण सरकार एवं प्रशासन की घोर लापरवाही है.यदि तथाकथित मानव कल्याण की योजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई,नदियों,नहरों आदि का अतिक्रमण नहीं किया गया होता तो आज उत्तराखंड का यह हाल नहीं होता.इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि किसी क्षेत्र का विकास पर्यावरण की उपेक्षा पर किया जाता है तो प्रकृति का गुस्सा उस क्षेत्र को विनाश की कगार पर पहुंचा देगा.
                                                                                       

बर्बाद

इस कदर हमने खुद को कर लिया बर्बाद  फिर निकले नही जज़्बात कोई उसके जाने के बाद..!!