सार्वजनिक उपक्रमों एवं पब्लिक सेक्टर बैंकों के निजीकरण का कदम सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही से बचने जैसा है।संसद में प्रधानमंत्री जी द्वारा निजीकरण के ऊपर दिया गया भाषण भ्रमित करने वाला है।एक तरफ पीएम बोलते है कि नौकरशाहों के हाथ मे देश देकर हम क्या करने वाले हैं?और दूसरी तरफ कहते हैं कि देश के नौजवानों को भी मौका मिलना चाहिए।क्या पीएम देश के नौकरशाहों और युवाओं को अलग-2 मानते हैं?क्या देश के नौकरशाह कहीं और से आते हैं?क्या सरकारी बैंकों या पीएसयू में नौजवान काम नही करते?क्या सिर्फ प्राइवेट सेक्टर में ही हुनरमंद युवा पाए जाते हैं,पब्लिक सेक्टर में नहीं?क्या सरकारी बैंकों को प्राइवेट कर देने से वे जनता के हित मे काम करने लगेंगे? वास्तव में सरकार की सभी योजनाएं जो गांवों और गरीबों के फायदे पर केंद्रित होती हैं उनमे सरकारी बैंकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।सरकार द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक 26 जून 2019 तक देश मे 35.99 करोड़ जनधन खाते थे जिनमे 34.73 करोड़ पीएसबी ने खोले थे जबकि सिर्फ़ 1.26 करोड़ खाते निजी बैंकों ने खोले।देश की सर्वाधिक लोकप्रिय अटल पेंशन योजना एवं सुरक्षा बीमा योजना के सफल क्रियान्वयन में भी सरकारी बैंक प्राइवेट बैंकों से कहीं आगे है।निजी क्षेत्र हर प्रोजेक्ट को नफा-नुकसान के तराजू पर तौलता है जबकि पीएसबी सरकार की प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करता है।कोरोना काल में जहाँ प्राइवेट अस्पतालों ने कोविड के मरीजों को लेने से मना कर दिया था तब उन्ही नौकरशाहों के नीतियों के चलते मरीजों को भर्ती किया गया था।बेशक युवाओं को मौका मिलना चाहिए लेकिन जब इसी तरह सभी क्षेत्र प्राइवेट ही हो जाएंगे तो सरकार मौका किस चीज़ का देगी।और जब युवाओं को प्राइवेट सेक्टर में ही जाना पड़ेगा तो सरकार की जिम्मेदारी क्या बनती है।जहाँ हर साल लाखों बेरोजगारों की फौज खड़ी हो रही है वहां रोजगार के अवसर सीमित कर देना सरकार की विफलता का प्रतीक है।यदि देश को निजीकरण की इतनी ही जरूरत है तो क्यूं न लोकतांत्रिक सरकार को हटा कर संसद में प्राइवेट सरकार स्थापित कर दी जाए।
शनिवार, 27 फ़रवरी 2021
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
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